Chhath Puja 2023: जानें इस साल कब है छठ पूजा? नहाय-खाय, खरना सहित अन्य सभी तारीखें


छठ पूजा एक हिंदू त्योहार है जो भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है | यह सूर्य भगवान और छठी माता की पूजा का त्योहार है। छठ पूजा चार दिन तक चलता है, जिसमें व्रत, स्नान, पूजा और सूर्य को अर्घ्य देना शामिल है। यह माना जाता है कि छठ पूजा करने से संतान सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त होती है।

इस त्योहार में छठी माता और सूर्यदेव की पूजा-अर्चना की जाती है. छठ पूजा के दौरान, पुरुष और महिला दोनों ही अपने बच्चों के स्वास्थ्य, खुशी और लंबी उम्र के लिए पूरे 36 घंटे का निर्जल व्रत रखते हैं. हिंदु मान्यताओं के अनुसार इस त्योहार का बहुत विशेष महत्व होता है.

कब से शुरू होगा छठ महापर्व

17 अक्टूबर, शुक्रवार, नहाय खाय

18 अक्टूबर, शनिवार, लोहंडा और खरना

19 अक्टूबर, रविवार, संध्या अर्घ्य

20 अक्टूबर, सोमवार, प्रात: अर्घ्य

सिमेज कॉलेज द्वारा लोक संस्कृति के पावन पर्व छठ पर्व के अवसर पर एक गीत और वीडियो “माई खातिर”  को लॉन्च किया गया | यह वीडियो छठ के अन्य पारम्परिक वीडियो से कई मायने में हट कर है | इस वीडियो में पहली बार एक ऐसे युवा छठ व्रती की कहानी दिखाई गई है,  जो जिंदगी में सफल भी है, आधुनिक भी है लेकिन इसके बावजूद अपनी मिटटी और परम्पराओं को नहीं भुला है और यही बात सीधा लोगों के दिलों तक पहुँचती है| 

इस छठ गीत “माई खातिर” को सिमेज पटना के ऑफिसियल यूट्यूब से रिलीज किया गया है।



नहाय खाय (पहला दिन)

यह छठ पूजा का पहला दिन है। नहाय खाय से मतलब है कि इस दिन स्नान के बाद घर की साफ-सफाई की जाती है और मन को तामसिक प्रवृत्ति से बचाने के लिए शाकाहारी भोजन किया जाता है।

खरना (दूसरा दिन)

खरना, छठ पूजा का दूसरा दिन है। खरना का मतलब पूरे दिन के उपवास से है। इस दिन व्रत रखने वाला व्यक्ति जल की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करता है। संध्या के समय गुड़ की खीर, घी लगी हुई रोटी और फलों का सेवन करती हैं, साथ ही घर के बाकि सदस्यों को इसे प्रसाद के तौर पर दिया जाता है।

संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन)

छठ पर्व के तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को संध्या के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। शाम को बाँस की टोकरी में फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि से अर्घ्य का सूप सजाया जाता है, जिसके बाद व्रति अपने परिवार के साथ सूर्य को अर्घ्य देती हैं। अर्घ्य के समय सूर्य देव को जल और दूध चढ़ाया जाता है और प्रसाद भरे सूप से छठी मैया की पूजा की जाती है। सूर्य देव की उपासना के बाद रात्रि में छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा सुनी जाती है।

भोर अर्घ्य (चौथा दिन)

छठ पर्व के अंतिम दिन सुबह के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद छठ माता से संतान की रक्षा और पूरे परिवार की सुख शांति का वर मांगा जाता है। पूजा के बाद व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर और थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत को पूरा करती हैं, जिसे पारण या परना कहा जाता है।

क्या है छठ का महत्व ?

हिंदू मान्यता के अनुसार, इस दिन षष्ठी देवी की पूजा की जाती है, जिन्हें ब्रह्मा की मानस पुत्री के रूप में भी जाना जाता है. कुछ जगाहों में इन्हें छठी माता के नाम से भी जानते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार वैदिक काल में यह पूजा ऋषियों द्वारा की जाती थी. मान्यता है कि छठी माता की पूजा करने से धन-धान्य की प्राप्ती होती है और संतानों की रक्षा करती हैं. जो दंपत्ती अपने जीवन में संतान सुख की प्राप्ती चाहते हैं, उनके लिए छठ पूजा अत्यंत आवश्य मानी गई है.


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